कुछ तो कर्ज अदा करो....
कुछ तो कर्ज अदा करो
दिया जो माँ-बाप ने इतना उसका कुछ तो कर्ज अदा करो।
नहीं चाहिये उनको दौलत बस खुद से न उन्हें कभी जुदा करो।।
हाथ पकड़कर चलाया जिन्होंने क्यों उनका साथ छोड़ जाते हो?
फ़र्ज निभाने के बजाये अपना हर चीज़ पर उनकी फिर क्यों अधिकार जमाते हो ?
दिये हमेशा संस्कार जिन्होंने अब उनको तमीज़ सिखाते हो
क्यों दो रोटी के लिए माँ - बाप के बँटवारे कर जाते हो ?
हो जाये जरा भी दर्द बच्चे के डॉक्टर की लाइन लगा दी जाती है
टूट जाए यदि पिता का चश्मा तो खर्चों की लिस्ट गिना दी जाती है ।
सौ गलतियाँ माँफ की बच्चों की हँसकर टाली हर बात
क्यों माँ -बाप की छोटी- सी गलती बच्चों से नहीं बर्दाश्त ?
घर बनाया जोड़-जोड़ कर अब उनका ही अधिकार नहीं।
हाथ पकड़कर कर देते हैं बाहर, कहते हैं - "आपके लिए अब जगह नहीं"
सेवा करो या करो न उनकी इसका कोई मलाल नहीं।
बस प्यार जता दो थोड़ा-सा फिर बच्चों से कोई सवाल नहीं।।
सोच रहे हो तुम शायद कि जग में तुम्हारा जवाब नहीं।
याद रखो इस बात को भी, चुक्तू होगा हर हिसाब सिर्फ यहीं... सिर्फ यहीं!
....निशा गोला....
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